एक दौर आता है जब हर व्यक्ति प्रॉपर्टी में निवेश की बात करता है भले ही उसके पास साधन नहीं होते हैं और यदि रहने के लिए घर होता है अधिकतर जो कि सब के पास पहले से ही पर्याप्त होता है। ऐसे में loans लिए जाते हैं और अपनी सम्पदा में से *LIC* पॉलिसी भी surrender करवा दी जाती है । husband और wife की एक आय को monthly EMI के नाम बली चढ़ाकर बहुत से त्याग मात्र इसलिए किए जाते हैं क्योंकि प्रॉपर्टी में returns नज़र आते हैं और LIC में नहीं
एक दूसरा दौर आता है जब इसी तरह gold ख़रीदा जाता है जो कि कुछ समय तक यानि temporarily बहुत उछलता है लेकिन जब चमक फीकी पढ़ती है तो अगली पिछली returns की average down कर जाती है। मुझे याद है कुछ वर्ष पूर्व कुछ पॉलिसी धारक LIC पॉलिसी surrender करवाकर Gold ख़रीदने में जुट गए ।
एक तीसरे दौर में सबने देखा equity और share market जैसी returns कहीं और नहीं मिल सकतीं । पॉलिसी धारक कहने लगे कि आपने कहाँ इतनी लम्बी अवधि की पॉलिसी में हमें फँसा दिया और year *2008-10 में हमने देखा कि LIC पालिसी की maturity से ही बच्चों की शिक्षा के समय पैसे निकाले जा सके, बेटियों का विवाह सम्पन्न किया गया।* और share mkt से पैसे निकाल नहीं पाये क्योंकि वर्षों तक markets ने perform नहीं किया।
थक हार कर एक नए दौर में जब लोग वापिस bank deposits की तरफ़ भागे तो *पाया कि यहाँ तो returns LIC पॉलिसी जैसे ही हैं और tax भी देना पड़ेगा और life risk कवर भी नहीं मिलेगा तो क्या लाभ ?*
ऊपर के सब दौर या काल में हमने पाया कि अंत में LIC जैसा कुछ नहीं । अब यह सिद्ध हो गया कि एक दिन आपकी property जब बिक नहीं पाती और share market से आप नुक़सान उठाते हैं , और उस दिन bank आपको मनचाहा ब्याज देता नहीं। और तो और इतिहास पलट जाता है जब आपकी जेब में रखे क़ीमती नोट ZERO हो जाते हैं , उस दिन भी आपके और परिवार के लिए सिर्फ़ और *सिर्फ़ LIC ही तटस्थ रहती है आपका साथ निभाने के लिए* ।
*इसलिए तो कहा जाता है जब LIC है तो कहीं और क्यूँ जाना ?*
– SUSHIL GUPTA.
S.B.A./ Dev. Officer
L.I.C. of India.